कोरोना के खौफ के आगे नहीं टिके सीएए विरोधी प्रदर्शन, शांत है शाहीन बाग

नई दिल्ली
इस समय दुनियाभर में कोरोना वायरस से बड़ी चिंता का विषय कुछ भी नहीं है। यह खतरनाक वायरस अब तक 6 हजार लोगों की जान ले चुका है और यूरोप के कई देशों में पांव फैलाता ही जा रहा है। भारत में भी कोरोना के 110 मरीज सामने आ चुके हैं जिनमें से 13 ठीक हो गए हैं और दो की मौत हो गई। इस महामारी के विकराल रूप लेने से थोड़ा पहले याद करिए। इससे पहले देश में क्या चल रहा था? दिल्ली में दंगा, सीएए को लेकर जगह-जगह प्रदर्शन, विपक्ष के कारारे आरोप और शाहीन बाग में महिलाओं का प्रदर्शन। शाहीन बाग में प्रदर्शन 93वें दिन भी जारी है लेकिन अब धीरे-धीरे लोगों का ध्यान बंट गया है। इस वायरस के डर से लोगों ने इकट्ठा होना भी छोड़ दिया है।


क्या है शाहीन बाग की स्थिति?
शाहीन बाग में पिछले तीन महीने से सीएए के खिलाफ प्रदर्शन चल रहा है। कुछ दिन पहले यहां दिन में 2 से 3 हजार लोग जमा रहते थे और पंडाल के बाहर भी लोगों का जमावड़ा लगा रहता था। कुछ उपद्रवी धरना स्थल पर हथियार लेकर भी पहुंच गए थे। हिंदू संगठनों ने प्रदर्शन खत्म करवाने और शाहीन बाग को खाली करवाने के लेकर धमकी भी दी थी लेकिन अब ऐसी धमकियां सुनने को नहीं मिल रही हैं। शाहीन बाग में टेंट के बाहर अब लोग भी नहीं दिखाई देते। हां टेंट में आज भी महिलाएं इकट्ठी होती हैं लेकिन इनकी संख्या 100-150 से ज्यादा नहीं होती। शाहीन बाग में लोग मास्क पहनकर भी प्रदर्शन करने पहुंचते हैं।


कालिंदी कुंज की सड़क का हाल
कालिंदी कुंज की सड़क का मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया था। सुप्रीम कोर्ट ने दो वार्ताकार भी नियुक्त किए और शाहीन बाग भेजा। आखिर इस समय कोई सड़क की बात क्यों नहीं कर रहा? दरअसल कोरोना वायरस की वजह से लोगों का आना जाना कम हो गया है। 31 मार्च तक स्कूल-कॉलेज बंद कर दिए गए हैं। सड़कों पर अब वैसी भीड़ नहीं दिखाई दे रही है। ज्यादातर लोगों की यही शिकायत रहती थी कि रोड बंद होने की वजह से बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे हैं। शाहीन बाग ने पुलिस ने पहले ज्यादा क्षेत्र में बैरिकेटिंग कर रखी थी। अब यह बैरिकेटिंग भी पीछे की तरफ खिसका ली गई है जिस वजह से लोग वहां से निकल रहे हैं। दरअसल शाहीन बाग में भीड़ कम होने की वजह से अब लोगों के आवागमन में उतनी परेशानी नहीं होती।



नॉर्थ ईस्ट दिल्ली में भी शांति
नॉर्थ ईस्ट दिल्ली में सीएए को लेकर हुए दंगों में 50 से ज्यादा लोगों की जान चली गई थी। दंगे के बाद पुलिस अभी भी गिरफ्तारियां कर रही है। सीलमपुर, मौजपुर और ब्रह्मपुरी के इलाके इस समय काफी शांत नजर आते हैं। दरअसल दंगों के बाद कई लोग घर छोड़कर अपने गांव भी चले गए थे। वहीं इन इलाकों में उत्तर प्रदेश और बिहार से आकर काम करने वाले लोग भी बड़ी संख्या में रहते हैं जो कि दंगे के समय अपने घर चले गए थे। हिंसा के बाद कोरोना वायरस की वजह से लोग इकट्ठा होने से परहेज कर रहे हैं। कई फैक्ट्रियों पर भी ताले लगे हैं। इस वजह से लोग अभी दिल्ली वापसी नहीं कर रहे हैं।

सीएए के विरोध में नहीं हो रहीं राजनीतिक सभाएं
कोरोना वायरस देश में राष्ट्रीय आपदा घोषित कर दी गई है। ज्यादा लोगों के इकट्ठे होने पर भी रोक है। इस वजह से राजनीतिक सभाएं लगभग बंद हो गई हैं। राजनीतिक सभाएं न होने की वजह से सरकार और विपक्ष दोनों तरफ से सीएए को लेकर बयान बाजी नहीं हो रही है। जिन राजनीतिक दलों ने रैली या सभा की योजना बनाई थी, कोरोना की वजह से उन्हें कैंसल करनी पड़ी।


सीएए को लेकर विपक्ष कहता रहा है कि मौजूदा सरकार देश में अल्पसंख्यकों के साथ नाइंसाफी करती है। सीएए का पूरा प्रदर्शन इसी बात पर आधारित था कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लेदेश के मुस्लिमों के इसमें क्यों नहीं शामिल किया गया? लोगों का यह भी कहना था कि इससे नागरिकता जा भी सकती है। हालांकि सरकार स्पष्ट करती रही है कि इससे देश के नागरिकों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। सरकार ने लगातार प्रयास जारी रखते हुए ईरान से 389 लोगों को निकाला। इसमें ज्यादातर श्रद्धालु शामिल थे। ऐसे में विपक्ष सरकार पर धर्म के आधार पर भेदभाव के आरोप लगाने में सक्षम नहीं है।

दुनियाभर में फैली महामारी
कोरोना वायरस ने दुनियाभर में महामारी का रूप ले लिया है। चीन के बाद यह सबसे ज्यादा इटली में कहर बरपा रहा है। यहां इस वायरस की वजह से मरने वालों का आंकड़ा 1900 के पास पहुंच गया है। वहीं यूरोप में 2000 से ज्यादा लोग कोरोना की वजह से मारे गए हैं। कजाखस्तान, अमेरिका और स्पेन सहित कई देशों ने आपातकाल की घोषणा कर दी है। ऐसे में सभी देशों की प्राथमिकता अन्य विवादों को छोड़कर इस महामारी से निपटने की है।